देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के नाम का स्मरण करते ही कश्मीर समस्या की याद स्वाभाविक रूप से आ जाती है. पाक-अधिकृत कश्मीर के रूप में उपस्थित यह समस्या नेहरु की लापरवाही और नादानी का प्रतीक है. नेहरु जी मुख्यतः कश्मीरी होने के कारन अपने को कश्मीर मामलों का विशेषज्ञ समझते थे. इसी कारन जहाँ देशी राज्यों को नव-स्वतंत्र भारत में विलय करने का दायित्व सरदार पटेल पर था, वहीँ नेहरु जी ने हठ पूर्वक कश्मीर को अपने कार्यक्षेत्र में रखा. जिसके फलस्वरूप आज तक पाकिस्तान से चार युद्ध हो चुके हैं.हम सभी जानते हैं की १५ अगस्त, १९४७ को खंडित भारत आजाद हुआ था. आज़ादी के पूर्व भारत में ५६२ रियासतें थी. इनमे १०० राज्य प्रमुख थे. जैसे- हैदराबाद, कश्मीर, बडौदा, ग्वालियर, मैसूर, आदि. इसके विपरीत कुछ रियासतें बहुत छोटी थीं. सरदार पटेल के विशेष प्रयत्नों से पाकिस्तान में शामिल होने वाली रियासतों के अतिरिक्त शेष सभी रियासतें भारत में शामिल हो गयीं. केवल जूनागढ़, कश्मीर व हैदराबाद की रियासतें विलय के लिए तैयार न थीं.जूनागढ़ और हैदराबाद की समस्या से कहीं अधिक जटिल कश्मीर का विलय करने की समस्या थी. कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे तथा इसकी सीमा पाकिस्तान से मिलती थी. अतः जिन्ना भी कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे. कश्मीर के शासक ने भी यह स्पष्ट नहीं किया था की वह पाकिस्तान अथवा भारत किसमें मिलना चाहता है.
इस बात का लाभ उठाते हुए जिन्ना ने २२ अक्टूबर,१९४७ को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर भेजा. इस पर कश्मीर का शासक भयभीत हो गया व उसने भारत से सैनिक सहायता मांगी. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुडाते हुए, उनके द्वारा कब्ज़ा किये गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी,कि बीच में ही ३१ दिसम्बर, १९४७ को नेहरु जी ने यू.एन.ओ. से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके. फलस्वरूप १ जनवरी, १९४९ को भारत पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम हो जाने के कारन भारतीय सेना के हाथ बंध गए, जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किये गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में सफल न हो सकी.जो आज भी नासूर बन कर हम भारतीयों को दुःख दे रही है.
( नेहरु जी के जन्मदिन पर ------- )