मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010
बीटी बैगन पर देशव्यापी विरोध, पुनर्विचार कर सकती है सरकार
पवन कुमार अरविंद, नई दिल्ली।
बीटी बैगन की खेती की मंजूरी के खिलाफ देशभर में कड़ा विरोध हो रहा है। देश के अग्रणी किसान संगठन “भारतीय किसान संघ” सहित अन्य कई संगठनों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाना शुऱु कर दिया है। शायद यही कारण है कि केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार की हरी झंडी मिलने के बावजूद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश को देश के विभिन्न हिस्सों में जा-जाकर जन अदालतें आयोजित कर, इस मुद्दे पर लोगों की राय लेनी पड़ रही है।
प्राप्त जानकारी के मुताविक, हैदराबाद, चंडीगढ़, कोलकाता, भुवनेश्वर, अहमदाबाद और नागपुर में आयोजित जन अदालतों में बीटी बैगन को लेकर श्री रमेश को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा है। विरोध को देखते हुए श्री रमेश को कहना पड़ा है कि बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि देश में बीटी बैगन की खेती की मंजूरी से संबंधित अंतिम फैसला 10 फरवरी को होगा।
भारतीय किसान संघ (भाकिसं) इसकी खेती को मंजूरी दिए जाने के खिलाफ है। संगठन ने देशभर में व्यापक पैमाने पर विरोध दर्ज कराया है। सरकार के इस कदम के खिलाफ आगामी कार्ययोजना पर विचार के लिए भाकिसं ने तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 19, 20 व 21 फरवरी को अपनी अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है, जिसमें संगठन के सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के शामिल होने की संभावना है। हांलाकि, भाकिसं 2008 के अपने सूरत अधिवेशन में बीटी बैगन की खेती के विरोध में एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है।
भाकिसं के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ठा. संकटा प्रसाद सिंह ने दूरभाष से संपर्क करने पर लखनऊ से बताया, “हम किसी भी स्थिति में इसको लागू नहीं होने देंगे। यह फसल मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। वैज्ञानिक दृष्ट से भी यह उचित नहीं है।” उन्होंने कहा कि इसके पक्ष में जितने भी तर्क दिए जा रहे हैं, सब निराधार है। श्री सिंह ने कहा कि यह जैव विविधता को खत्म कर देगा। बीज पर किसानों का अधिकार नहीं रह जाएगा।
उन्होंने कहा कि प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि इस प्रकार की फसलों के प्रभाव से चूहों के फेफड़े और गुर्दे खराब हो जाते हैं। जब चूहे इस उत्पाद को नहीं पचा पा रहे हैं तो मनुष्य कहां से पचा पाएगा। यह फसलें मनुष्य के स्वास्थ्य और आनुवंशिकी पर विपरीत असर डाल सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में ऐसे फेसले से रही है। हांलाकि, हैदराबाद की एक जन अदालत में श्री जयराम रमेश ने कुछ संगठनों के द्वारा लगाए जा रहे इस प्रकार के आरोपों का खंडन किया है।
गौरतलब है कि बैगन की खेती वाले प्रमुख राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार ने इस मसले पर सबसे पहले विरोध किया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब और कर्नाटक भी इस फैसले का विरोध कर रहे है। कृषि मंत्रालय ने कहा है कि बीटी बैगन को जारी करने से पहले जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रुवल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी ली गई थी। इस कमेटी के प्रमुख सदस्य और प्रख्यात वैज्ञानिक श्री पी.एम. भार्गव ने इसका विरोध किया था।
कृषि एवं पर्यावरण से जुड़े कुछ वैज्ञानिकों ने बीटी बैगन को भले ही खेती के योग्य बता दिया हो, लेकिन देशभर में हो रहे विरोध को देखते हुए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। श्री जयराम रमेश ने कृषि मंत्री शरद पवार को इसके बारे में एक विस्तृत पत्र लिखा है। जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) की वैधानिकता को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा है कि लोगों के हित व भावनाओं का सम्मान करना भी सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
बीटी बैगन- बैगन की सामान्य प्रजाति में आनुवंशिक संशोधन के बाद तैयार की गई नई फसल। आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें ऐसी फसले हैं, जिनके डीएनए में विशिष्ट बदलाव किए जाते हैं। अब तक ऐसे बदलाव सिर्फ प्राकृतिक हुआ करते थे, जिनके कारण आनुवंशिक बीमारियां होती हैं। लेकिन अब वैज्ञानिक भी प्रयोगशालाओं में आनुवंशिक बदलाव कर सकते हैं, ऐसे अधिकांश बदलाव जानलेवा होते हैं। हांलाकि, कुछ बदलाव जीव या फसलों में वांछित गुण भी पैदा कर सकते हैं। आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के जीन में इसी तरह के बदलाव किए जाते हैं। प्रायः फसलों की पैदावार और उनमें पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए ऐसा किया जाता है।
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