बुधवार, अप्रैल 28, 2010
मौत के घाट उतार दिए जाएंगे 40 हजार से ज्यादा वृक्ष
एक तरफ जहां पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ प्रदूषण को कम करने में सक्षम वृक्षों की धुआँधार कटाई भी जारी है। एक सूचना के मुताबिक, गंगनहर एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए चालीस हजार से ज्यादा हरे-भरे वृक्षों को एकमुश्त मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
हालांकि विकास का विरोध नहीं होना चाहिए लेकिन पर्यावरण की कीमत पर विकास स्वीकार्य भी नहीं होना चाहिए। विकास कार्यों का विरोध और पर्यावरण की कीमत पर विकास, केवल वहीं लोग चाहते हैं जिनका इसमें कुछ स्वार्थ निहित हो।
दरअसल, होना तो यह चाहिए कि ऐसी परियोजनाओं के निर्माण के लिए सरकार को वृक्षों की कटाई से पहले ही कम से कम दस गुना वृक्षारोपण करवाना चाहिए। वृक्षारोपण के कम से कम दो या तीन साल बाद ही लक्षित वृक्षों को काटना चाहिए।
वृक्षों को काटने के लिए केवल पर्यावरण मंत्रालय और वन मंत्रालय से अनुमति ले लेना नाकाफी कदम है, हालांकि यह कानूनी रूप से सही है, लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से अनुचित है। वृक्षों को काटने का अधिकार किसी को नहीं है।
सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए कि केवल उन्हीं लोगों को वृक्षों को काटने की अनुमति मिले जो काटने से पहले कम से कम उसके बदले दस गुना वृक्ष लगाएं।
लगता है कि उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी में हरित क्रांति की जनक मानी जाने वाली गंगनहर को अब विकास की कीमत भी चुकानी पड़ेगी। नहर की पटरी के किनारे उत्तराखंड तक गंगनहर एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए 40,000 पेड़ों को कुर्बान किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के लिए संबंधित विभाग से एनओसी जारी हो चुकी है।
केंद्रीय पर्यावरण विभाग ने प्रथम चरण में सिंचाई विभाग को 840 पेड़ों को काटकर सड़क चौड़ी करने की अनुमति दी है। वहीं सिंचाई विभाग ने गंगनहर के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के करीब 152 गांवों में रहने वाले 1,000 लोगों को नोटिस जारी किए हैं। अकेले टीकरी गांव में ही करीब 200 लोगों को नोटिस दिए गए हैं।
उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन एक्सप्रेस-वे करीब 115 किमी का होगा, जो बुलंदशहर से होकर एनएच-91 के पास गांव सनोटा से शुरू होगा। वैसे इस प्रोजेक्ट पर करीब 5500 करोड़ रूपए का खर्च आएगा। आठ लेन का एक्सप्रेस-वे गंगनहर के एक तरफ बनाया जाएगा।
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता ए.पी. सिंह का कहना है कि बुलंदशहर से हरिद्वार तक 8 लेन के प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे के लिए अकेले उत्तर प्रदेश में ही 40,000 पेड़ काटे जाएंगे।
उन्होंने बताया कि यह एक्सप्रेस-वे एनएच-24, एनएच-58 और 91 को आपस में जोड़ेगा। प्रोजेक्ट में एक कंपनी को सिर्फ 10 किमी का स्ट्रेच बनाने की अनुमति दी जाएगी, ताकि प्रोजेक्ट जल्दी पूरा हो सके। इसके लिए अब तक कई कंपनियों को ठेके दिए जा चुके हैं। प्रोजेक्ट के लिए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभागों के अफसरों की समन्वय समिति बनी है।
सड़क का निर्माण हो जाने के बाद आप जब इस पर फर्राटा भरेंगे, तब शायद आपको यहां पेड़ की छाया भी नसीब न हो।
पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति के मिलने के साथ ही गाजियाबाद जिले में गंगनहर एक्सप्रेस-वे काम जल्द शुरू करने के लिए जमीन के सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। फिलहाल कांवड़ रोड को चौड़ा करने का काम शुरू हो चुका है। पहले चरण में इस रोड को चौड़ा करने के लिए मिट्टी भराई के साथ-साथ पेड़ों की कटाई का काम भी शुरू हो गया है।
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2 टिप्पणियां:
ये तो बहुत दुखद है और गैर कानूनी ..भी ...
विश्व में १० देश ऐसे भी हैं जहाँ लकड़ी से कोई भी वास्तु बनाना निषिद्ध है। और पेड़ काटने पर मृत्यु दंड का प्रावधान है। क्योंकि वे पेड़ और पर्यावरण के महत्त्व को समझाते हैं। हमारे शास्त्रों में हरे पेड़ को काटना अपने युवा पुत्र की हत्या के बराबर अपराध माना गया है। अधुनिकर्न की अंधी दौड़ में हम पेड़ों के महत्त्व को तो नक्कार रहे हैं वह दिन दूर नहीं जब हमारे अंतिम संस्कार के लिए भी लकड़ी ढूंढें नहीं मिलेगी।
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