शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

'मानव'

पृथ्वी पर मनुष्य ही
एक ऐसा प्राणी है,
जो अपने मद में मस्त,
अपने में पस्त,
जीवन-यापन में ब्यस्त,
लोगों को करता है त्रस्त,
पता नहीं किस नशे में चूर,
दुनिया से बहुत दूर,
दूसरो के प्रति क्रूर,
अपने जीवन का एक-एक क्षण,
समाज की गतिबिधियों से परे होकर
गुजार देता है.
आखिर ऐसा क्यों है ?
क्या वह नहीं जनता
या फिर,
इस पड़ाव को मंजिल समझकर
अपना लक्ष्य भूल गया है.
जरा सोच !
जिस वत्सल मातृभूमि ने
तुमको जन्म दिया,
पालन-पोषण किया,
उसके प्रति तुम्हारा
कुछ कर्त्तव्य नहीं बनता क्या ?
अब बहुत हो चुका,
निरुद्देश्य मत भटक !
जीवन की सार्थकता को समझ !
हवा में नहीं
ज़मीन से जुड़कर
चिंतन किया कर !

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