कश्मीर मसले पर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त त्रि-सदस्यीय वार्ताकार दल के प्रमुख दिलीप पडगांवकर का अफजल गुरू के संदर्भ में दिया गया बयान देश-विरोधी तो है ही; साथ ही आतंकियों के मनोबल को बढ़ाने वाला भी है। उनका बयान प्रत्येक भारतीय को यह सोचने के लिये मजबूर करता है कि क्या वे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट तो नहीं हैं? पडगांवकर ने कहा है कि संसद हमले के दोषी अफजल की फांसी के संदर्भ में केंद्र सरकार ने गलत समय पर निर्णय लिया है। इसका सीधा असर कश्मीर के शांतिपूर्ण माहौल पर पड़ेगा।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों गृह मंत्रालय ने संसद पर हमले के दोषी अफजल की दया याचिका को नामंजूर करने की सिफारिश करने वाली फाइल को राष्ट्रपति के पास भेज दिया है। इस बात की पुष्टि गृह राज्यमंत्री एम. रामचंद्रन ने राज्यसभा में की। उन्होंने बताया कि अफजल की दया याचिका से संबंधित फाइल को 27 जुलाई 2011 को राष्ट्रपति के सचिवालय को भेजा जा चुका है। विदित हो कि 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले में 5 आतंकियों और 6 सुरक्षाकर्मियों समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी। अफजल इस हमले का मास्टर माइंड है।
यह दूसरा ऐसा अवसर है जब पडगांवकर इस तरह के विवादों में घिरे हैं और उनकी देश के प्रति निष्ठा संदिग्ध हो गयी है। इससे पहले कश्मीरी अलगाववादी डॉ. गुलाम नबी फई प्रकरण पर उनकी काफी किरकिरी हुई थी। पडगांवकर पर आरोप है कि उन्होंने फई द्वारा विदेशों में कश्मीर मसले पर आयोजित कई सम्मेलनों में हिस्सा लिया और पाकिस्तान के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किये। हालांकि पडगांवकर के अलाव इस श्रेणी में कई और भारतीय बुद्धिजीवी भी हैं, जिन्होंने समय-समय पर भारत की कश्मीर नीति के खिलाफ बोला।
विदित हो कि फई वॉशिंगटन स्थित कश्मीरी अमेरिकन कौंसिल (केएसी) का प्रमुख है। वह 1990 से अमेरिका में रह रहा है। उसको कश्मीर मसले पर लाबिंग और पाकिस्तान सरकार व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने के आरोप में संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने 19 जुलाई को वर्जीनिया में गिरफ्तार किया था। फिलहाल अमेरिकी अदालत ने फई को गहन निगरानी में रखने का आदेश सुनाते हुए 27 जुलाई को जमानत दे दी।
अब प्रश्न उठता है कि कश्मीरी अलगाववादी फई की मेहमाननवाजी का लुफ्त उठाने, सम्मेलनों में कश्मीर मसले पर कथित रूप से पाकिस्तान के पक्ष में बोलने और अब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी अफजल पर बयान देने वाले पडगांवकर पर क्या विश्वास किया जा सकता है? कश्मीर समस्या का संभावित हल तलाशने के निमित्त सितम्बर में आने वाली उनकी रिपोर्ट पर क्या सहज ही विश्वास किया जा सकेगा? पडगांवकर की गतिविधियों और बयानों से अभी से स्पष्ट होने लगा है कि उनकी कश्मीर मसले पर संभावित रिपोर्ट ‘अलगाववाद का पुलिंदा’ ही होगी !
गुरुवार, अगस्त 11, 2011
‘अलगाववाद का पुलिंदा’ होगी पडगांवकर की रिपोर्ट !
पवन कुमार अरविंद
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1 टिप्पणी:
bhtrin khojpurn lekhan ke liyen badhaai ..akhtar khan akela kota rajsthan
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