जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग और देश का सीमावर्ती राज्य है। इस राज्य पर पड़ोसी देशों- पाकिस्तान और चीन ने 15 अगस्त 1947 के बाद पांच हमले किये हैं। इसमें चीन का एक हमला शामिल है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह जम्मू-कश्मीर में अब भी घुसपैठ की फिराक में सदैव रहते हैं। पाकिस्तान से सटे जम्मू-कश्मीर की सीमा पर तैनात भारतीय सैन्य बलों द्वारा आतंकियों से निपटना अब उनकी नियमित दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया है।
सुरक्षा की दृष्टि से जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि देश के किसी भी सीमावर्ती राज्य को सेना से मुक्त करना घातक है, साथ ही अव्यवहारिक भी। चाहे कश्मीर में पूरी तरह सामान्य स्थिति ही बहाल क्यों न हो जाये, अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर में सैन्य बल को सदैव तैनात रहना ही चाहिए। सामान्य स्थिति बहाल होने के बाद सेना अपनी बैरकों में वापस जा सकती है, लेकिन इस अवस्था को विसैन्यीकरण नहीं कहा जा सकता। जो लोग जम्मू-कश्मीर के विसैन्यीकरण की मांग कर रहे हैं, वे देश का अहित कर रहे हैं। ऐसे लोग देश विरोधी और पाकिस्तान समर्थक हैं।
पाकिस्तान क्यों नहीं चाहेगा कि उसके अधिकार क्षेत्र में भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर भी आ जाए। इसमें उसकी हानि क्या है? मुफ्त का चंदन घिस मेरे नन्दन। पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलती के कारण जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में पहले से ही है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र का लगभग 10 हजार वर्ग किमी. और कश्मीर क्षेत्र का लगभग 06 हजार वर्ग किमी. पाकिस्तान के कब्जे में है। चीन ने 1962 में आक्रमण करके लद्दाख के लगभग 36,500 वर्ग किमी. पर अवैध कब्जा कर लिया। बाद में पाकिस्तान ने भी चीन को 5500 वर्ग किमी. जमीन भेंटस्वरूप दे दी, ताकि बीजिंग उसका सदैव रक्षक बना रहे।
विगत दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के स्थायी मिशन के काउंसलर ताहिर हुसैन अंदराबी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक बहस के दौरान कहा, "जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है और न ही यह कभी रहा है।" इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के उप स्थायी प्रतिनिधि रजा बशीर तरार ने कहा, “दक्षिण एशिया में जम्मू-कश्मीर के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों में मंजूर किया गया है।”
यह सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान के पैदा होने पूर्व से ही भारत का अभिन्न अंग है। यह महाराजा हरि सिंह द्वारा 26 अक्टूबर 1947 को किये गये विलय-पत्र पर हस्ताक्षर से ही भारत का अंग नहीं बना, इस्लामी आक्रांताओं के हमलों के पूर्व भी यह भारत का ही अभिन्न अंग था। यहीं उत्तरवैदिक काल में देश के कोने कोने से आए 6 दार्शनिकों ने पिप्पलाद ऋषि से सृष्टि रहस्यों पर तर्क किये थे। इन्हीं प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों का संग्रह विश्वख्यात दर्शन ग्रन्थ ‘प्रश्नोपनिषद्’ है। कल्हड़ की राजतरंगिणी भी इसी मिट्टी की पैदाइश है। जम्मू कश्मीर भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्राचीन भूमि है। जबकि 15 अगस्त 1947 के पहले पाकिस्तान का कहीं कोई अस्तित्व नहीं था। ऐसे में पाकिस्तानी अधिकारियों- हुसैन अंदराबी और रजा बशीर का कथन भ्रामक और झूठ का पुलिंदा तो है ही, हास्यास्पद भी है।
कश्मीर के संदर्भ में जहां तक जनमत-संग्रह का प्रश्न है, तो देश और विदेश में बहुत लोग ऐसे हैं जो यह मानते हैं कि कश्मीर समस्या के समाधान के रूप में जनतम-संग्रह की मांग एकदम व्यर्थ है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के दो महासचिवों ने भी कहा था कि जनमत-संग्रह की मांग अब अप्रासंगिक हो गया है। पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी जनमत-संग्रह की बात को खारिज करते हुए कश्मीर समस्या के समाधान के लिए एक अलग ही फॉर्मूला पेश किया था। हालांकि उनका फॉर्मूला भी विवादित ही था। लेकिन पाकिस्तानी खर्चे पर पलने वाले कश्मीरी अलगाववादी व उनके समर्थक अब भी जनमत-संग्रह और आत्म-निर्णय का राग अलाप रहे हैं, यह हास्यास्पद है।
सवाल कश्मीर में जनमत-संग्रह या आत्म-निर्णय का नहीं, बल्कि यह है कि क्या पाकिस्तान का निर्माण आत्मनिर्णय या जनमत-संग्रह के आधार पर हुआ था? यदि ऐसा हो तो कश्मीर में भी होना चाहिए। लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि आज यदि पाकिस्तान में जनमत-संग्रह कराया जाये तो शांति के पक्षधर अधिकांश पाकिस्तानी भारत में मिलने के लिए अपना मत प्रकट करेंगे। यदि अखंड भारत में जनमत-संग्रह या आत्म-निर्णय के आधार पर पाकिस्तान निर्माण का फैसला हुआ होता तो आज पाकिस्तान का अस्तित्व ही नहीं होता। तो फिर कश्मीर के संदर्भ में जनमत-संग्रह या आत्म-निर्णय का प्रश्न कहां से खड़ा किया जा रहा है?
बुधवार, अक्तूबर 12, 2011
कश्मीर पर निरर्थक बातें
पवन कुमार अरविंद
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1 टिप्पणी:
दिन मे चौबीस बार कॉंग्रेस देश की आजादी का श्रेय लेती है। चुनावो के दौरान तो कुछ ज्यादा ही।
लेकिन कॉंग्रेस कश्मीर के नासूर और 14 अगस्त 1947 के बंटवारे का श्रेय क्यो नही लेती??
शेख अब्दुल्ला की बेगम के इश्क़ मे नेहरू एक अकेले कश्मीर से भी ढंग से नही निपट पाये। वही सरदार पटेल ने 144 रियासतों को बड़ी कुशलता से देश मे शामिल कर लिया। इसे कहते हैं लीडर.
पहले नेहरू थे, और अब 'फ़ाईवादी' सेकुलर हैं जो कश्मीर को पाकिस्तान की झोली मे डालने को बेताब हैं।
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