उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले के लहुरादेवा गांव में सात हजार साल पहले धान की खेती के प्रमाण मिले हैं। चीन में धान की खेती इसके बहुत बाद शुरू हुई। यह तथ्य रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक के जरिए किए गए एक शोध में सामने आया है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग की संस्था बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस ऐतिहासिक तथ्य का खुलासा किया है। संस्थान के रेडियो कार्बन प्रयोगशाला के प्रभारी डॉ. चंद्रमोहन नौटियाल ने बताया कि धान की खेती के अलावा शरीफा को लेकर भी यह साक्ष्य मिले हैं कि यह पंजाब के संघोल और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में 3500 साल पहले पाया गया था। अब तक ऐसा माना जाता था कि 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली इस फल को अपने साथ भारत लाए थे, लेकिन सच्चाई यह नहीं है।
हालांकि प्रख्यात इतिहासकार और गोरखपुर विश्वविद्यालय के भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो. शिवाजी सिंह ने अगस्त 2007 में एक अनौपचारिक बातचीत में मुझे इस बात की जानकारी दी थी। प्रो. सिंह ने अमेरिका सहित कई देशों में आयोजित सेमिनारों में इस मुद्दे को उठाया था। इस दौरान उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि उनके द्वारा पेश किये गये तथ्यों ने सेमिनार में आये विद्वानों की बोलती बंद कर दी थी। अब तक चीन का दावा था कि धान की खेती सबसे पहले उसने ही शुरू की।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
पश्चिमी देशों में रेडियो कार्बन डेटिंग से आगे की नई तकनीक एक्सलेटर मास स्पक्ट्रोमेट्री आई है। इससे यह संभव हो पाया है कि किसी भी जीवाश्म के एक मिलीग्राम नमूने से उसकी उम्र का पता लगाया जा सकता है। फिलहाल रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक में नमूने की मात्रा न्यूनतम एक ग्राम होनी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें