पवन कुमार अरविंद
दिल्ली चुनाव के नतीजे किसी भी नई राजनीतिक शैली की ओर इशारा नहीं करते
हैं। यहां चूंकि कांग्रेस पहले से ही मृतप्राय थी इसलिए जनता ने आम आदमी पार्टी को
चुना। भाजपा का यह हश्र तो केवल उसके कुछ प्रमुख नेताओं के अहंकार के कारण हुआ है।
यह जनादेश मात्र उसी की प्रतिक्रिया भर है। इसका अर्थ यह नहीं है कि अरविंद केजरीवाल
की पार्टी अब लगातार दिल्ली फतह करती रहेगी। वास्तविकता तो यह है कि उसकी सीमा मात्र
दिल्ली तक ही सीमित है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान
और महाराष्ट्र समेत देश के कई हिस्सों में उसका रत्तीभर भी असर नहीं होने वाला।
बामन भगवान ने भी एक पैर धरती पर रखकर ही आकाश-पाताल को एक किया था। लेकिन
भाजपा के कुछ प्रमुख नेताओं के दोनों पांव धरती पर नहीं थे। वे कुछ ज्यादा ही उड़ने
लगे थे। उसी का हश्र है यह मौजूदा दुर्गति, और कुछ नहीं। कहा भी जाता है कि ‘विधाता’
का प्रमुख भोजन अहंकार ही है।
वैसे भी देखें तो, एक व्यक्ति की पार्टी होना भाजपा के डीएनए में ही नहीं
है। लेकिन कुछ लोग इसी तरफ अग्रसर दिखाई दे रहे थे। ये बातें पार्टी के समर्थकों व
कार्यकर्ताओं में जरूर कहीं न कहीं रही है। ये भी भाजपा की दुर्गति का एक प्रमुख कारण
है।
हालांकि, भाजपा व उसके पूर्ववर्ती जनसंघ ने अपने गठन से लेकर आज तक चुनावी
हार-जीत के बहुत से किस्से देखे और सुने हैं। भाजपा के लिए ये हार कोई नई बात नहीं
है। लेकिन, यदि दिल्ली के नतीजों पर भाजपा गंभीरता से चिंतन-मनन करके ईमानदारी से आगामी
योजना-रचना बनाती है, तो यह उसके लिए संजीवनी भी साबित हो सकता है। उसके अश्वमेघ यज्ञ
के घोड़े को किसी में पकड़ने की क्षमता नहीं रह जाएगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें