
हम सभी जानते हैं की १५ अगस्त, १९४७ को खंडित भारत आजाद हुआ था. आज़ादी के पूर्व भारत में ५६२ रियासतें थी. इनमे १०० राज्य प्रमुख थे. जैसे- हैदराबाद, कश्मीर, बडौदा, ग्वालियर, मैसूर, आदि. इसके विपरीत कुछ रियासतें बहुत छोटी थीं. सरदार पटेल के विशेष प्रयत्नों से पाकिस्तान में शामिल होने वाली रियासतों के अतिरिक्त शेष सभी रियासतें भारत में शामिल हो गयीं. केवल जूनागढ़, कश्मीर व हैदराबाद की रियासतें विलय के लिए तैयार न थीं.जूनागढ़ और हैदराबाद की समस्या से कहीं अधिक जटिल कश्मीर का विलय करने की समस्या थी. कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे तथा इसकी सीमा पाकिस्तान से मिलती थी. अतः जिन्ना भी कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे. कश्मीर के शासक ने भी यह स्पष्ट नहीं किया था की वह पाकिस्तान अथवा भारत किसमें मिलना चाहता है.
इस बात का लाभ उठाते हुए जिन्ना ने २२ अक्टूबर,१९४७ को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर भेजा. इस पर कश्मीर का शासक भयभीत हो गया व उसने भारत से सैनिक सहायता मांगी. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुडाते हुए, उनके द्वारा कब्ज़ा किये गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी,कि बीच में ही ३१ दिसम्बर, १९४७ को नेहरु जी ने यू.एन.ओ. से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके. फलस्वरूप १ जनवरी, १९४९ को भारत पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम हो जाने के कारन भारतीय सेना के हाथ बंध गए, जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किये गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में सफल न हो सकी.जो आज भी नासूर बन कर हम भारतीयों को दुःख दे रही है.
( नेहरु जी के जन्मदिन पर ------- )
2 टिप्पणियां:
विषय बहुत पुराना हो चुका है तबसे रावी -चिनाब -झेलम -सिन्धु मँ बहुत पानी बह चुका है ,| उनकी राज हठ से उत्पन्न समस्या अब अप्पना महत्त्व सम्बन्ध खो चुकी है | आज के कश्मीर की समस्या आज की कांग्रेश की नीतियों विशेष रूप से कश्मीर को कुछ परिवारों खानदानों की जागीर समझ लेना जिसमें शामिल ,अब्दुल्ला परिवार के प्रभाव को कम कारन हेतु विभिन्न जनाधार विहीन नताओं को आगे लाने का प्रयोग तथा बाद में केन्द्र में सविंद प्रकार की मिली जुली दलों की सरकार का आना और उनके वारा अपने को कांग्रस से भी ज्यादा बड़ा सेकुलियर इखाने की कोशिशों में उठाये कदमों ने ज्यादा हालत बिगाडे ||और फ़िर कश्मीर की वर्तमान आतंक एवं अलगाव वाद की समस्या तो पकिस्तान की हताश मानसिकता की देन है | जितना धन पाक ने भारत के विरुद्ध प्रत्यक्ष व छाया युद्ध लड़ाने में लगा रहा है ,वह अगर अपने विकास में लगता तो शायद वह इस क्षेत्र के सबसे समृद्ध देशों मँ होता || नेहरू को मरे लगभग 42 वर्षों से अधिक और गांधी को 60 वर्षों से अधिक हो रहे है अब तो यह"स्यापा " करना छोड़ ही दें तो अच्छा होगा वरना इ इतने युगों बाद यह स्यापा उनकी गलती को कम आप की और हमारी अक्षमता को ज्यादा "उजागर " करती है | अगर इसी से चिपके रहना है तो आप ही समस्या उठा रहे है क्या इसका हल भी बताएँगे | क्या आप के पूर्वज "बाबा -दादा से कोई गलाती हो गयी थी तो क्या हम उसे सुधर ने की रह नहीं खोजते केवल अपने पूर्वजों को कोसते हिन् रहते है | आईये वर्त्तमान में जीना सीखें और आज के परिपेक्ष्य में समस्याओं का हल खोंजे ? कमसे कम खोजने की कोशिश तो कर सकतें है |और अगर हम समस्याओं का हल ढूँढना ही चाहतें हैं तो अपने परिवर को देखें खु द को देखें बहुत सी छोटी -छोटी समस्याएं जो आगे चल कर बड़ी समस्या बन सकती है मिल जायेगी अप्प के अडोस -पड़ोस में देखें |बस याद रखें " 'हम सुधरें जग सुधरा ' आखिर हम जैसों की इकाई से ही तो परिवार ,परिवारों से समाज ,समाज से देश ,और देशो से राष्ट्र बनते हैं | और ' हम बदलें युग बदलेगा || आपके पास एक सूचना संभवता अधूरी है ,उस जहाँ तक हमने पढा है ,उस समय के महाराजा कशमीर पाक से समझौता कराने को तैयार हो गयेथे या ट्रीटी पर हस्ताक्षर कराने जा रहे थे |
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