सोमवार, मार्च 09, 2020

अयोध्या में दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ी


चम्पत राय 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अयोध्या में आवागमन बढ़ा है। श्रीरामलला के दर्शनार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हम चाहते हैं कि अयोध्या जाने वाले तीर्थयात्री यह प्रत्यक्ष अनुभव करें कि फैसले के बाद से अयोध्या में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं। तीर्थयात्रियों के अनुकूल व्यवस्था बनाने के लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। 
मा. चम्पत राय, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव
भव्य मंदिर निर्माण का कार्य पूरा होने तक श्रीरामलला को अस्थाई मंदिर में शिफ्ट किया जाएगा। हम चाहते हैं कि आगामी नवरात्र में श्रीरामलला के दर्शन अस्थायी रूप से बनाए जाने वाले मंदिर में किये जा सकें। यह अस्थायी मंदिर ऐसा होगा जिसमें एक साथ कम से कम 25 श्रद्धालु रामलला के दर्शन कर सकेंगे। अस्थायी मंदिर का काम अगले 15-20 दिन में पूरा हो जाएगा। मौजूदा व्यवस्था में श्रीरामलला का दर्शन एक बार में सिर्फ एक-दो श्रद्धालु ही कर सकते हैं। हम ऐसा काम करेंगे कि श्रद्धालु श्रीरामलला के दर्शन निकट से कर सकें। दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को ज्यादा पैदल न चलना पड़े, जितनी दूरी घटाई जा सकती है, हम घटाने का प्रयास करेंगे। सुरक्षा भी एक पहलू है। दूरी घटाने के लिए सुरक्षा खतरे में नहीं पड़नी चाहिए, हम इसका भी ध्यान रखेंगे। 
जहां तक मंदिर निर्माण की बात है तो हम कोई भी नया कार्य रामनवमी से पहले शुरू नहीं करेंगे। एक तकनीकी दिक्कत है। पहले भूमि का विधिवत परीक्षण किया जाएगा। उसके बाद ही मंदिर निर्माण शुरू होगा। कोई भी नया काम अप्रैल के तीसरे सप्ताह या अप्रैल बीतने के बाद ही शुरू करेंगे। हम श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण की दिशा में एक-एक कदम आगे बढ़ रहे हैं। क्या-क्या होना चाहिएहम इस पर अनवरत विचार कर रहे हैं। 
मंदिर बड़े नहीं होतेउसका कॉरिडोर और कॉम्प्लेक्स बड़ा होता है। विहिप के प्रस्तावित मॉडल के अनुरूप कार्यशाला में पत्थरों की तराशी का काम चल रहा है। मॉडल में परिवर्तन हुआ तो मंदिर निर्माण में लगने वाला समय बढ़ जाएगा। हम यह चाहते हैं कि मंदिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों का रंग एक समान हो, भिन्न-भिन्न रंग के पत्थरों का उपयोग न हो। पत्थर राजस्थान के भरतपुर जिले के वंशीपहाड़पुर की पहाड़ियों का है। उसे सैंडस्टोन कहते हैं। पिंक कलर का यह सैंडस्टोन है। राष्ट्रपति भवन भी इसी का बना है। राजस्थान सरकार ने उस क्षेत्र को फारेस्ट क्षेत्र घोषित कर दिया है। अब वहां से उस रंग के पत्थर उपलब्ध नहीं हो सकेंगे।
मंदिर कंक्रीट का नहीं बनेगा, क्योंकि कंक्रीक की उम्र कम होती है। यह अधिकतम सौ साल मानी जाती है। जहां तक लोहे की बात है तो उसमें जंग लगने की संभावना अधिक होती है। जबकि, पत्थर से निर्मित होने वाले मंदिरों की उम्र कम से कम 500 साल तक होती है।
मंदिर निर्माण के शुभारंभ के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रह सकते हैं। ट्रस्ट की पहली बैठक के बाद ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास जी और केशव पाराशरन समेत हम चार लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से मिले थे। उस दौरान नृत्यगोपाल दास जी ने प्रधानमंत्री जी से पूछा कि आप अयोध्या कब आएंगे? इस पर प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आप जब कहेंगे, आ जाएंगे।

उम्र 93 साल, कोर्ट में 16 घंटे खड़े होकर बहस
अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान मैं रोज सुप्रीम कोर्ट जाता था। मैंने 40 दिन कोर्ट अटेंड की है। एक प्रसंग ध्यान में आता है। वरिष्ठ अधिवक्ता केशव पाराशरन की आयु 93 वर्ष है। अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान वे कोर्ट में खड़े हो गए। सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई साहब ने कहा कि आप बहुत बुजुर्ग हैं, बैठकर बोलिए। लेकिन उन्होंने खड़े होकर दलीलें रखीं। पाराशरन जी ने टिप्पणी की कि मैंने न जाने कैसे-कैसे आदमियों का मुकदमा खड़े होकर किया है। अब जब मेरे ही आराध्य का मुकदमा है तो मैं बैठ जाऊं? भगवान ने उनको शक्ति दी। कोर्ट में लगातार दो घंटे खड़ा रहना पड़ता था। उसके बाद एक घंटे का ब्रेक। फिर दो घंटे खड़े रहना पड़ता था। इस प्रकार वे पहले राउंड में ही 16 घंटे खड़े रहे। 
हमारे दूसरे अधिवक्ता थे सीएस वैद्यनाथन, वे सुनवाई के दौरान जूते उतार देते थे। उनसे पूछा गया तो वे कहने लगे कि ये मेरे आराध्य का केस है, मैं मंदिर में बैठा हूं तो जूता कैसे पहन सकता हूं? इस प्रकार के डेडिकेशन से, इमोशन से और सेंटिमेंट से काम करने वाले लोगों ने भगवान का मुकदमा लड़ा। सिर्फ हम नहीं बल्कि पूरा समाज श्री केशव पाराशरन जी और वैद्यनाथन जी का ऋणी रहेगा।

(श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव एवं विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चम्पत राय से पत्रकार पवन कुमार अरविंद की बातचीत पर आधारित। यह बातचीत 25 फरवरी, 2020 को हुई थी।)

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