
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पथ पर चलते हुए भारतीय राजनीति को एक नइ दिशा देनेवाले लाल कृष्ण आडवानी आज (८ नवम्बर) को ८१ वर्ष के हो गए. आडवानी एक ऐसे महान राजनेता का नाम है जो सत्ता से नहीं अपितु सत्ता के लिए या सत्ता के विरुद्ध संघर्ष के लिए परिभाषित होते रहे है.
राजनीति "काजल की कोठरी" के समान है. इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि -------काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय ! एक लीक काजल की लागी हय पे लागी हय !! लेकिन आडवानी जी इसके अपवाद है. अपने ६१ वर्षीय बेदाग सार्वजनिक जीवन में ८१ वर्षीय आडवानी जी ने भाजपा को बहुत कुछ दिया है. कभी २ सांसदों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा को सदन में १८२ तक पहुंचाने में आडवानी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब जून, २००५ में उत्पन्न जिन्ना विवाद में आडवानी एकदम अलग-थलग पड़ गए थे. गैर तो गैर अपनों ने भी बिना सोचे समझे उनके विरुद्ध धरती-आसमान एक कर दिया था. मुझे ऐसा लग रहा था की आडवानी जी की राजनीतिक पारी अब समाप्त हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं था. वास्तव में, जिन्ना विवाद के रूप में "धैर्य" उनकी परीक्षा ले रहा था, और वे उस परीक्षा में सफल हुए.
उनके जीवन से जुडी एक और घटना मुझे याद आती है जब वे हवाला कांड में आरोपित हुए थे. उन्होंने तत्काल त्यागपत्र देकर निर्दोष साबित होने तक चुनाव न लड़ने का भीष्म प्रतिज्ञा कर लिया. ऐसी प्रेरणादायी राजनीतिक जीवन जीनेवाले आडवानी जी को उनके जन्मदिन पर परमात्मा से चिरंजीवी होने की कमाना करता हूँ।