बुधवार, नवंबर 18, 2015

अशोक सिंहल : एक अथक यात्री का अवसान, अब स्मृति ही शेष

अशोक सिंहल
पवन कुमार अरविंद
20वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 21वीं सदी के पूर्वार्द्ध में इस धरती पर हिंदुओं के सबसे बड़े नेता और विहिप के संरक्षक अशोक सिंहल जी अब हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन उनकी स्मृतियां हमारे मानस पटल पर हमेशा जीवंत रहेंगी।
बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली के आरके पुरम् स्थित ‘संवाद सृष्टि’ मीडिया सेंटर से सक्रियता के साथ जुड़ा हुआ था। यह मीडिया सेंटर विहिप के केंद्रीय कार्यालय परिसर में ही स्थित था। इस कारण विहिप के शीर्ष पदाधिकारियों से हमेशा मुलाकात एक सामान्य बात थी। यह भी महज संयोग ही है कि इसी दौरान श्रीराम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का ऐतिहासिक फैसला 30 सिंतबर 2010 को आया था। 
हाईकोर्ट के इस फैसले के एक दिन बाद सिंहल जी से मिलने मैं उनके कक्ष में गया। वहां देखा कि वे अपने कक्ष में बने एक छोटे से मंदिर में स्थापित भगवान श्रीराम की प्रतिमा को अपलक निहार रहे थे। ऐसा लगा कि वे उनसे कह रहे हों कि अब हमने आधी लड़ाई तो जीत ली है, आधी ही शेष है। उनके चेहरे पर विजय का भाव साफ झलक रहा था। कुछ क्षण बाद उनका ध्यान मेरी तरफ गया तो उन्होंने मुझे बैठने को कहा। उनसे कुछ पूछता, उसके पहले ही वे कहने लगे, “हाईकोर्ट का फैसला तो आ गया है, लेकिन भूमि के बंटवारे की बात ठीक नहीं लग रही है। यह सब लोग जानते हैं कि अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है, जो एक तथ्य भी है। फिर भी कोर्ट का फैसला सीधा और सरल नहीं है। फिलहाल जो भी हो हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि वहां से हमें न्याय मिलेगा और अपने जीवनकाल में ही अयोध्या में राममंदिर का निर्माण देखूंगा।”

यह भी महज संयोग ही है कि सिंहल जी से मेरा परिचय वर्ष 2005 में अयोध्या के कारसेवकपुरम् में हुआ था। उस दौरान मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बस्ती जिले का जिला प्रचारक था। बस्ती से अयोध्या, बाईक से करीब डेढ़-दो घंटे का रास्ता है, इसलिए वहां कई बार जाना-आना हुआ था। तब से उनसे कई बार मुलाकात हुई।
सिंहल जी हर मुलाकात में राममंदिर निर्माण की चर्चा जरूर किया करते थे। यह बात उनके मुंह से सहसा ही निकल जाया करती थी। इसका कारण सिर्फ एक ही था कि मंदिर मुद्दे से उनका तादात्म्य स्थापित हो गया था। उठते-बैठते, सोते-जागते सिर्फ राम मंदिर। राम मंदिर को मूर्त रूप में देखने की तीव्र इच्छा। हालांकि सिंहल जी का यह स्वप्न उनके जीवनकाल में साकार नहीं हो सका, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि वर्ष 2020 तक अयोध्या में भगवान श्रीराम का भौतिक वैभव पूर्ण रूप से बहाल हो जाएगा।
इन्हीं शब्दों के साथ अशोक सिंहल जी को भावभीनी श्रद्धाजंलि

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