गुरुवार, मई 12, 2011

'कुरूक्षेत्र' बना ग्रेटर नोयडा का भट्टा पारसौल गांव

ग्रेटर नोयडा का भट्टा पारसौल गांव इन दिनों उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महाभारत का कुरूक्षेत्र बना हुआ है। इस महाभारत में कौरवों का पक्ष कौन है, यह पहचानना बड़ा ही कठिन है, क्योंकि सभी अपने को पाण्डव होने का ही दावा कर रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों के नेता इस कुरूक्षेत्र में पहुंचकर केवल ‘अग्निबाण’ चलाने पर आमादा हैं। इस मामले के हल से उनका कुछ भी लेना देना नहीं। केवल अगले चुनाव में वोट का जुगाड़ हो जाय, इस महाभारत का एकमेव लक्ष्य है।

असली महाभारत तो कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ था, लेकिन वर्तमान का यह राजनीतिक महाभारत केवल कौरवों के बीच ही होता दिख रहा है। क्योंकि जिस प्रकार इस आंदोलन के सहारे पार्टियों में राजनीतिक बढ़त पाने की होड़ मची हुई है, उससे केवल यही उपमा समीचीन है। यहां न कोई पाण्डव है और न ही कोई कृष्ण, जो अर्जुन को गीता का उपदेश देकर धर्मपथ पर चलते हुए कर्मक्षेत्र में डटे रहने के लिए प्रेरित करे। सबको ऐन-केन-प्रकारेण ‘हस्तिनापुर’ की सत्ता ही दिख रही है। बस, वही लक्ष्य है। किसानों का दुःख-दर्द जाये भाड़ में।

मंगलवार, मई 10, 2011

‘जो मांगा नहीं गया, वो दिया भी नहीं जा सकता’

पवन कुमार अरविंद

विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री श्री चम्पत राय ने श्रीराम-जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय के सोमवार के आदेश पर संतोष व्यक्त किया है। उन्होंने एक बाचतीत के दौरान यह उम्मीद जतायी कि स्वामित्व विवाद मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी होगी।

उच्चतम न्यायालय में श्रीराम-जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले में 30 सितम्बर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के निर्णय के विरुद्ध दायर सभी अपीलों की सोमवार को सुनवाई हुई। ध्यातव्य है कि स्वामित्व विवाद संबंधी निर्णय के विरुद्ध शीर्ष न्यायालय में यह प्रथम अपील है।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा की दो सदस्यीय पीठ कर रही है। सोमवार को सुनवाई प्रारम्भ होते ही पीठ ने स्वतःस्फूर्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अत्यंत चौंकाने वाला मामला है कि उच्च न्यायालय की त्रि-सदस्यीय पूर्ण पीठ ने भूमि का तीन भागों में बंटवारा कर दिया, जबकि मूलवाद में किसी भी पक्ष ने बंटवारे की बात कही ही नहीं थी और न इसकी मांग की थी।

न्यायालय ने कहा, "जो मांगा नहीं गया वह दिया भी नहीं जा सकता।" यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने सभी अपीलें सुनवाई के लिए स्वीकार लीं और भूमि के बंटवारे संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी।

न्यायालय ने श्रीरामलला की पूजा-अर्चना यथावत चलते रहने का आदेश भी दिया। हालांकि, इस मामले में जो अभी तक पक्षकार नहीं थे; परन्तु उन्होंने शीर्ष न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिये थे, उनकी अपील पर न्यायालय ने आज की सुनवाई के दौरान संज्ञान नहीं लिया।

ध्यातव्य है कि 30 सितम्बर 2010 का निर्णय यद्यपि उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों का निर्णय था, तथापि मुकदमों की मौलिक सुनवाई होने के कारण उच्च न्यायालय की वह पीठ ट्रायल कोर्ट की तरह व्यवहार कर रही थी।

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