
देश की प्रमुख समस्याओं को लेकर संत-महात्मा चाहे भले ही भिन्न-भिन्न मत रखते हों लेकिन अयोध्या में राममंदिर निर्माण, गंगा की अविरलता और गो-रक्षा के मुद्दे पर इनकी सोच एक है। और वे मंदिर निर्माण के लिए देशभर में 16 अगस्त से 15 नवंबर तक चलाए जाने वाले जनजागरण अभियान के प्रबल समर्थक हैं।
इन बिंदुओं पर संतों का यह विचार हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र में सोमवार को सम्पन्न विश्व हिंदू परिषद की सर्वोच्च निर्णायक संस्था केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में दृष्टिगत हुआ है।
हालांकि, संतों ने अपने इन विचारों का सार्वजनिक प्रकटीकरण मार्गदर्शक मंडल की बैठक के एक दिन बाद विहिप द्वारा निर्वाणी अखाड़ा परिसर में आयोजित विशाल संत सम्मेलन में भी किया है।
अभी तक तो इन बिंदुओं को लेकर संतों में मतभिन्नता की बातें भी रह-रह कर उठ रही थीं। लेकिन इस सम्मेलन के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि संत समाज मंदिर निर्माण को लेकर व्याकुल है। साथ ही गंगा की अविरलता और गो-रक्षा के मसले पर गंभीर है।
सभी संतों का एक स्वर में कहना है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण शीघ्र होना चाहिए। वे इसके लिए किसी भी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं हैं। वे यह भी कहने लगे हैं कि मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन हम स्वयं चलाएंगे। इसको लेकर अब किसी राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं रहा। सभी ने मंदिर मुद्दे को राजनीतिक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया है। इसलिए अब इसको वोट का विषय नहीं बनने देंगे।
उल्लेखनीय है कि मंदिर निर्माण के लिए संत-महात्माओं सहित देश के कुछ प्रमुख लोग इसके पहले तक तीन विकल्प बताते रहे हैं। इसमें पहला अदालत के फैसले द्वारा, दूसरा दोनों पक्षों के बीच समझौता और तीसरा विकल्प संसद में कानून बनाकर।
लेकिन विहिप और संत समाज अदालत के फैसला आने के बाद मंदिर निर्माण को लेकर असहज है। जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज कहते हैं कि मानलीजिए अदालत का फैसला हमारे पक्ष में आ जाता है तो दूसरा पक्ष ऊपरी अदालत में अपील कर देगा, जिसके बाद निर्माण के लिए अदालत के फैसले का दीर्घकाल तक इंतजार करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में हम सभी अब और इंतजार करने के लिए तैयार नहीं हैं। हम शीघ्र ही रामलला का भव्य मंदिर देखना चाहते हैं।
वह कहते हैं कि मस्जिद अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के बाहर कहीं भी बन सकती है। लेकिन एक पक्ष यदि यह कहे कि जन्मभूमि परिसर में ही मस्जिद बनेगी तो मंदिर बनने देंगे, यह हरगिज स्वीकार नहीं है। हम देशभर में जनजागरण अभियान चलाकर सरकार को संसद में कानून बनाने पर मजबूर कर देंगे।
विहिप के संयुक्त महामंत्री श्री चंपत राय कहते हैं कि 20 वर्षों से मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। तीन सदस्यीय पूर्णपीठ मामले की सुनवाई कर रही है। किसी न किसी न्यायाधीश के सेवानिवृत्त अथवा पदोन्नति हो जाने के कारण पीठ का 12 बार पुनर्गठन हो चुका है। दुःख की बात यह है कि मामले की सुनवाई में जब अधिवक्ताओं के कानूनी तर्क प्रस्तुत हो रहे थे तब पीठ का पुनर्गठन हो गया और नई पीठ ने पुराने तर्कों का सारांश पुनः सुना। न्यायालय की इस प्रक्रिया में पांच-छह महीने बर्वाद हो गए। इसलिए न्यायालय मंदिर निर्माण के लिए शीघ्र फैसला सुना देगी, इसमें संतों को संदेह है।
विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल कहते हैं, ‘यदि लालकृष्ण आडवाणी ने 1989 में रथयात्रा नहीं निकाली होती तो मंदिर का निर्माण अब तक हो चुका होता।’ इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि रथयात्रा के पहले तक मंदिर निर्माण का लगभग सभी राजनीतिक दल और उनके प्रमुख नेता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे थे। लेकिन रथयात्रा के बाद ये लोग यह समझ बैठे कि इस आंदोलन से भाजपा को लाभ मिलेगा, और ये लोग मंदिर निर्माण के विरोधी हो गए।
अदालत के फैसले पर श्री सिंहल कहते हैं कि आस्था के संबंध में अदालत निर्णय नहीं दे सकता। मंदिर का निर्माण केवल और केवल कानून बनाकर ही संभव है। हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि अदालत वर्षांत में मंदिर निर्माण के पक्ष में कोई सकारात्मक फैसला सुना सकती है। तीसरे विकल्प पर उनका कहना है कि अब तक दोनों पक्षों के बीच बातचीत निरर्थक ही साबित हुआ है। लेकिन यह संत समाज के ऊपर है कि वे बातचीत को विकल्प के रूप में देखते हैं कि नहीं।
श्री सिंहल कहते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन का विकल्प भी खुला हुआ है। लेकिन इसके पहले देशभर में जनजागरण के माध्यम से संत समाज मंदिर निर्माण के संदर्भ में अपनी बात से जनता को अवगत कराएंगे।
चाहे जो कुछ भी हो लेकिन मार्गदर्शक मंडल की बैठक और संत सम्मेलन में जिस प्रकार देशभर के लगभग सभी प्रमुख संतों ने विहिप द्वारा मंदिर निर्माण के लिए चलाए जाने वाले जनजागरण अभियान का एक स्वर से समर्थन किया है उससे तो यही लगता है कि जनजागरण के ये चार महीने मंदिर निर्माण की दिशा में महत्वपूण साबित हो सकते हैं।