मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

अनूठा है गाजियाबाद का नंदी पार्क

गोवंश में सबसे उपेक्षित माना जाता है नंदी यानी सांड़; पर, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद नगर निगम ने इन उपेक्षित सांडों के पालन और उससे कमाई का जरिया ढूंढ निकालने का अद्भुत कारनामा कर दिखाया है।

नगर के सांड़ों के लिए गाजियाबाद नगर निगम ने एक 'नंदी पार्क' बनाया है और नगर में इधर-उधर घूमने वाले छुट्टा सांड़ों को यहां रखने का समुचित प्रबंध किया गया है।

इस समय पार्क में लगभग 260 सांड़ हैं। देश के इस पहले नंदी पार्क की स्थापना कराने वाली नगर की महापौर श्रीमती दमयंती गोयल बताती हैं कि इन सांड़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन सांड़ों को यहां प्रशिक्षित किया जाता है और ये सांड़ अपने लिए चारा काटने, पानी निकालने और इनवर्टर चार्ज कर अपने लिए बिजली उत्पादन की व्यवस्था भी स्वयं कर रहे हैं। इन सांडों से प्राप्त गोबर से कम्पोस्ट खाद तैयार की जा रही है, जो अच्छे दामों पर नंदी कम्पोस्ट के नाम से बाजार में बिकने लगी है।

नंदी पार्क में स्वस्थ उन्नत नस्ल के सांडों को प्रजनन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और दो सौ रूपये प्रति गाय की दर से गर्भाधान की कीमत भी प्राप्त की जा रही है। प्रतिदिन चार-पांच गाय प्रजनन के लिए यहां लाई जाती हैं। श्रीमती दमयंती गोयल बताती हैं कि तीन वर्ष पूर्व जब उन्होंने नगर निगम की बागडोर संभाली थी तब नगर में आवारा सांड़ों की संख्या बहुत अधिक थी। इन सांड़ों ने एक वर्ष के भीतर एक दरोगा समेत दो लोगों की जान ले ली और एक दर्जन से अधिक लोगों को बुरी तरह घायल कर दिया।

तब नगर निगम ने अनेक गोशालाओं से सम्पर्क किया मगर कोई भी इन सांड़ों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुआ। अत: उन्होंने नगर आयुक्त अजय शंकर पांडे के साथ मंत्रणा कर साहिबाबाद में बेकार और बंजर पड़ी भूमि पर नंदी पार्क की नींव रख दी।
धीरे-धीरे अनेक संगठन भी इन सांड़ों की देखभाल के लिए आगे आने लगे। सर्दी के दिनों में इन सांड़ों को गुड़ खिलाने वालों का यहां तांता लगने लगा।

नगर के शनि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले तेल को मंदिर के पुजारियों से एकत्रकर इन सांड़ों को तेल पिलाया जाता है। देश भर के नगर निगम प्रमुखों का एक प्रतिनिधिमंडल हाल में ही इस पार्क को देखने पहुंचा। यही नहीं अनेक महापौर अपने-अपने नगरों में इसी प्रकार के पार्क विकसित करने का संकल्प लेकर गये।

नंदी कम्पोस्ट और प्रजनन संवर्धन केंद्र से आवारा सांड अपनी देखभाल और खुराक का खर्च स्वयं निकाल रहे हैं। कोल्हू में जोतकर पानी निकालने, बिजली बनाने और चारा मशीन चलाने का यह अभिनव प्रयोग गाजियाबाद में अब लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।

3 टिप्‍पणियां:

deepak ने कहा…

मुझे ये लेख बहुत ही पसंद आया
आप सच मे बहुत अछा लिखते है
और इतनी अछी इनफमेशन आप लाते कहा से है...

सच मे अची च्चीज पता चला है

थॅंक्स
...........

दीपक

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

janm din ki badhai

20 april

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

प्रकाश पाखी ने कहा…

आपकी जानकारी अच्छी लगी..मेरे पास भी २५० गौ धन है...जिसमे काफी देशी गायें है.क्या आपको ऐसे उन्नत देसी सांड की जानकारी है जो अधिक दुग्ध उत्पादन की गायें पैदा कर सके!

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