रविवार, मई 09, 2010
कानून को धता बताकर मस्जिद में जारी है निर्माण
दक्षिण दिल्ली के अत्यंत पॉश इलाके कालकाजी थाना अन्तर्गत गत 30 वर्षों से कानून को धता बताकर मस्जिद का अवैध निर्माण हो रहा है। न्यायालय के स्थगन आदेश के बावजूद पुलिस निर्माण कार्य रुकवाने में नाकाम रही है। इस संदर्भ में पुलिस का रवैया पक्षपातपूर्ण रहा है। इस पूरे मामले की सत्यता जानने के लिए पवन कुमार अरविंद ने मौके पर जाकर मौजूदा स्थिति का अवलोकन किया और इस निर्माण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे अरावली रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों से भी बातचीत की। प्रस्तुत है एक रिपोर्ट-
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) नें अलकनंदा इलाके में अरावली अपार्टमेंट के निर्माण के लिए 30 अगस्त 1979 को एक कार्ययोजना तैयार की। इस कार्ययोजना में डीडीए द्वारा अधिग्रहीत भूमि के एक छोटे से हिस्से पर चर्च का नाम तो था लेकिन मस्जिद का कहीं भी जिक्र नहीं था।
1980 में कालकाजी थानान्तर्गत अलकनंदा मुहल्ले में अरावली अपार्टमेंट का निर्माण कार्य शुरू हुआ। निर्माण कार्य में लगे कुछ मुस्लिम मजदूरों ने नमाज अता करने के लिए अस्थाई रूप से अपार्टमेंट के कार पार्किंग क्षेत्र में बालू और सीमेंट से एक छोटा चबूतरा बना दिया। और उस पर हरी चादर ओढ़ा दी। इस स्थान पर मुस्लिम मजदूरों ने नियमित रूप से नमाज अता करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते मुसलमानों का एक वर्ग उस भू-भाग पर मस्जिद होने का दावा करने लगा। और बाद में मस्जिद निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया। हालांकि, इस निर्माण के लिए डीडीए, डीएमसी (दिल्ली महानगर पालिका) आदि किसी वैधानिक संस्था से स्वीकृति भी नहीं ली गयी।
अपार्टमेंट के अंतर्गत कारपार्किंग के लिए करीब 800 वर्ग गज जमीन निर्धारित था। इसी भू-भाग में से करीब 200 वर्ग गज भूमि पर अवैध रूप से मस्जिद खड़ी कर दी गयी। राजस्व रिकार्ड में मस्जिद का कहीं भी नाम नहीं है।
हालांकि, इस अवैध निर्माण के बावजूद भी डीडीए ने रहमदिली दिखाते हुए अवैध मस्जिद को नजदीक के धोबी घाट पर स्थानांतरित करने के लिए स्थानीय मुस्लिम नेताओं को कब्जाए गए जमीन का करीब ढाई गुना यानि 500 वर्ग गज जमीन देने का प्रस्ताव रखा था लेकिन मुसलमानों की जिद के कारण डीडीए का यह प्रस्ताव धरा का धरा रह गया। जबकि, ईसाईयों ने चर्च की वैध भूमि के बदले अपार्टमेंट के नजदीक ही दूसरी भूमि लेना स्वीकार कर लिया।
अवैध निर्माण मामले को राज्यसभा सदस्य श्री सत्यप्रकाश मालवीय ने 22 मार्च 1986 को सदन में उठाया। जिसके जवाब में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री श्री अब्दुल गफूर ने अपने लिखित बयान में यह स्वीकार किया कि मस्जिद का निर्माण अवैध है। और इसको कहीं अन्यत्र स्थानांतरित करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस मामले की लड़ाई अलकनंदा स्थित अरावली रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन लड़ रहा है। एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री रामगोपाल गुप्ता कहते हैं कि 1983 में मस्जिद की चहारदीवारी का कार्य प्रारंभ हुआ। इस चहारदीवारी को पहले से भी अधिक भू-भाग पर अतिक्रमण कर बनाया गया। श्री गुप्ता कहते हैं कि पहले मस्जिद के पिछले हिस्से में 6 फीट का रास्ता था लेकिन उसको भी कब्जा कर लिया गया है। इस रास्ते की चौड़ाई कहीं तीन तो कहीं 4 फीट बची है।
जुलाई 2006 में जब चहारदीवारी के अंदर आरसीसी से निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ तो एसोसिएशन ने 5 जुलाई 2006 को तीसहजारी अदालत में स्थगनादेश के लिए याचिका दायर की। 19 जुलाई 2006 को अदालत ने मौके पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। उसके बाद भी निर्माण कार्य जारी रहा। एसोसिएशन ने इस निर्माण के विरूद्ध अगस्त 2006 में न्यायालय की अवमानना याचिका दायर की। हालांकि, इस संदर्भ में अभी कोई निर्णय नहीं आया है।
इसके पूर्व एसोसिएशन ने मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए उच्च न्यायालय में गुहार लगायी। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने 19 जनवरी, 2009 को कहा, “मामले में बहुत पेंचीदगी है। एक पक्ष का कहना है कि यह अनाधिकृत है और दूसरा पक्ष कहता है कि यह दिल्ली बोर्ड की प्रॉपर्टी है। इसका फैसला निचली अदालत में हो सकता है। इस संदर्भ में जो पक्ष चाहे अपना पक्ष दायर करे।”
इस संदर्भ में एसोसिएशन ने पुराने केस के साथ ही तीसहजारी आदालत से मामला स्थानांतरित करा कर पटियाला अदालत में अप्रैल 2009 में याचिका दायर की। जहां मामले की संयुक्त सुनवाई हो रही है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री पी.आर. चौधरी कहते हैं कि 19 जनवरी 2009 के उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मस्जिद में मदरसा शुरु कर दिया गया है। मदरसे में करीब 40 विद्यार्थी हैं। इनकी उम्र 5 से लेकर 17 वर्ष के बीच है। इस छात्रों का निवास मस्जिद परिसर में ही है।
19 जुलाई 2009 के उच्च न्यायालय के निर्णय के मुताबिक, नमाजी सिर्फ मस्जिद में ही नमाज अता कर सकते हैं। उन्हें मस्जिद की सीमा के बाहर कार पार्किंग क्षेत्र के अन्य खाली जगहों के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है।
लेकिन पुलिस की निष्क्रियता के कारण उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं हो सका। इस कारण रेजीडेंट एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय में दिल्ली वक्फ बोर्ड तथा स्थानीय मस्जिद के खिलाफ न्यायालय की अवमामना का मामला दर्ज कराया। जिसके बाद ही पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। और नमाजियों को मस्जिद के अंदर ही नमाज अता करने के लिए विवश किया।
हालांकि, इस मामले में पुलिस ने अपना जवाब दाखिल कर न्यायालय को यह आश्वासन दिया कि वह भविष्य में अदालत केआदेश का पूरी तरह पालन करेगी। पुलिस के इस आश्वासन के बाद न्यायालय ने अवमानना मामला बंद कर दिया।
इसके तुरंत बाद स्थानीय मस्जिद कमेटी ने 23 अप्रैल 2010 को पुनः अवैध निर्माण कार्य मस्जिद परिसर में प्रारंभ कर दिया। इस निर्माण कार्य के संदर्भ में एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मस्जिद कमेटी को इस आशय की सूचना भी दी कि मस्जिद में किसी भी निर्माण कार्य के लिए न्यायालय का स्थगनादेश है। इसलिए आप लोग निर्माण कार्य बंद कर दें। फिर भी निर्माण कार्य जारी रहा।
एसोसिशन ने निर्माण कार्य की सूचना कालकाजी पुलिस स्टेशन में दी। लेकिन पुलिस अगले 55 घंटों तक निष्क्रिय बनी रही। पुलिस की निष्क्रियता के खिलाफ अरावली निवासियों ने मस्जिद के सामने प्रदर्शन किया जिसके बाद पुलिस सक्रिय हुई। और निर्माण कार्य 25 अप्रैल को सायं 5 बजे रुकवा दिया। इसके बाद से ही मस्जिद परिसर में पुलिस तैनात है और यथास्थिति बनी हुई है।
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1 टिप्पणी:
सेकुलर किन्नरों के राज में यही होगा। हम पाक को तो आतंक कि फैक्ट्रिया बंद करने का शोर मचा रहे है मगर हमारे यहाँ तो आतंक के कारखाने कायम हो चुके हैं। पाक में ११००० मदरसों से १०००० जेहादी हर साल पैदा होते हैं, और हमारे यहाँ ३,५०,००० मदरसे हैं जिन्हें अरब देशों से बेशुमार दौलत भेजी जाती है। हमारे ये सेकुलर भडुए महज़ वोट कि खातिर आँखे मूंदे बैठे हैं। वाशिंगटन टाइम्ज़ के एडिटर एट लार्ज अर्नौड डी बोर्च्ग्रेव कि रिपोर्ट देखें .
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