
असली महाभारत तो कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ था, लेकिन वर्तमान का यह राजनीतिक महाभारत केवल कौरवों के बीच ही होता दिख रहा है। क्योंकि जिस प्रकार इस आंदोलन के सहारे पार्टियों में राजनीतिक बढ़त पाने की होड़ मची हुई है, उससे केवल यही उपमा समीचीन है। यहां न कोई पाण्डव है और न ही कोई कृष्ण, जो अर्जुन को गीता का उपदेश देकर धर्मपथ पर चलते हुए कर्मक्षेत्र में डटे रहने के लिए प्रेरित करे। सबको ऐन-केन-प्रकारेण ‘हस्तिनापुर’ की सत्ता ही दिख रही है। बस, वही लक्ष्य है। किसानों का दुःख-दर्द जाये भाड़ में।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें