रविवार, मई 05, 2013

अटल दा जवाब नहीं...


लालकृष्ण आडवाणी 
 
स्वतंत्रता प्राप्ति के 66 वर्षों में, भारत में अब तक चौदह प्रधानमंत्री बने, जिनमें से 6 का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम का रहा। शेष आठ में से दो ने पंद्रह वर्षों से ज्यादा समय तक देश पर शासन किया। ये थे पण्डित नेहरू (17 वर्ष) और श्रीमती इंदिरा गांधी (16 वर्ष)। अन्य चार प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल पांच वर्ष या उससे अधिक रहा। इनमें डा0 मनमोहन सिंह (9 वर्ष), अटल बिहारी वाजपेयी (6 वर्ष), पी.वी. नरसिम्हा राव और राजीव गांधी (5-5 वर्ष) तक प्रधानमंत्री रहे। मोरारजी देसाई ढाई वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे, और लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल ताशकंद की घटनाओं के चलते मात्र डेढ़ वर्ष ही रहा। जिन 6 प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम रहा उनमें शामिल हैं वी.पी. सिंह, एच.डी. देवेगौडा और आई.के. गुजराल (11-11 महीने), चन्द्रशेखर (8 महीने), चरण सिंह (6 महीने) और गुलजारी लाल नंदा (1 महीना)।
जिन दो प्रधानमंत्रियों ने देश पर सर्वाधिक ज्यादा समय शासन किया, उनका प्रभाव जनमानस पर ज्यादा गहरा रहा है, लेकिन यदि उनकी सफलताओं और असफलताओं की बैलेंस शीट (लेखा-जोखा) बनाई जाएगी तो कुल मिलाकर नतीजे ज्यादा खुश करने वाले नहीं निकलेंगे।

पण्डित नेहरू के मामले में, जिन्हें महात्मा गांधी ने कांग्रेस की अधिकतर राज्य इकाइयों द्वारा सरदार पटेल के पक्ष में होने के बावजूद, भारत सरकार चलाने हेतु चयनित किया, की सभी उपलब्धियों पर उनके द्वारा चीन पर किया गया गलत विश्वास और उनके रक्षा मंत्री द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा तैयारियों की अपराधिक उपेक्षा ने पानी फेर दिया। पण्डितजी की विदेश और रक्षा नीतियों के फलस्वरूप देश को 1962 में चीन के हाथों शर्मनाक पराजय झेलनी पड़ी, एक ऐसा अपमान जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

श्रीमती गांधी की सर्वाधिक शानदार उपलब्धि थी 1971 में पाकिस्तान पर भारत की निर्णायक विजय और स्वतंत्र बंगलादेश का निर्माण। लेकिन श्रीमती गांधी के कार्यकाल में 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनका लोकसभाई चुनाव रद्द कर देने और आगामी छ: वर्षों तक किसी भी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने सम्बन्धी निर्णय के चलते तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश पर आपातकाल थोप दिया, सभी मूलभूत अधिकार निलम्बित कर दिए, एक लाख से अधिक विपक्षी कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया और एक प्रकार से लोकतंत्र को समाप्ति के कगार पर पहुंचा दिया।
आपातकाल विरोधी संघर्ष में जयप्रकाश नारायण के प्रेरणादायी नेतृत्व और 1977 के लोकसभाई चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारतीय मतदाताओं द्वारा सिरे से नकार दिए जाने ने भारतीय लोकतंत्र को बचाया, और न केवल भारत को सामान्य स्थिति में वापस लाए अपितु इसने हमारे राजनीतिक आकाओं के लिए भी सदैव के लिए चेतावनी दी कि अपने संकीर्ण हितों की रक्षा और संवर्ध्दन के लिए कभी भी आपातकाल सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधानों का दुरूपयोग करने की सोचना भी नहीं।

सर्वाधिक ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले दोनों की तुलना में शास्त्रीजी और मोरारजी देसाई का कार्यकाल काफी कम रहा। लेकिन उनकी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठ व्यवहार ने लोगों पर गहरी छाप छोड़ी और जनता में इन दोनों के लिए अनन्य सम्मान अर्जित किया।

1951 में डा0 श्यामा प्रसाद मुकर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। डा0 मुकर्जी के व्यक्तित्व और गठित नई पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों ने हजारों देशभक्त युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया जिनकी मूल दीक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हुई थी। इनमें प्रमुख थे पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर सिंह भण्डारी, जगन्नाथ राव जोशी, पी0 परमेश्वरन, डा0 बलदेव प्रकाश और केवल राम मलकानी।

मेरा अपना राजनीतिक जीवन सन् 1951 में शुरू हुआ। इसलिए, 1952 से होने वाले भारत के प्रत्येक आम चुनावों में मुझे या तो प्रचारकर्ता या फिर एक उम्मीदवार के रूप में भाग लेने का मौका मिलता रहा है।

मैं अपने लिए यह सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे हमारी पार्टी के विचारक दीनदयालजी, हमारी पार्टी के सबसे कद्दावर नेता अटलजी, और नानाजी देशमुख के साथ निकट से काम करने का मौका मिला; नानाजी ने हम सब के सामने यह सिध्द कर दिखाया कि कैसे राजनीतिक गतिविधियों को ग्रामीण जनता के लिए रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ मिलाकर चलाया जा सकता है।

उन चार प्रधानमंत्रियों जिन्होंने पांच वर्ष या उससे अधिक समय तक शासन किया है, में से एक डा0 मनमोहन सिंह पिछले नौ वर्षों से सत्ता में हैं। यदि लोकसभाई चुनाव अपने निर्धारित समय सन् 2014 में होते हैं तो तब तक वह प्रधानमंत्री के रूप में दस वर्ष पूरे कर लेंगे। नेहरू परिवार से बाहर वाले व्यक्ति के लिए यह एक अद्वितीय विशेषता होगी। परन्तु इससे भी  अधिक अद्वितीय परन्तु संदेहास्पद विशेषता यह भी होगी, कि स्वतंत्र भारत के राजीनीतिक इतिहास में वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लोकसभा के लिए कभी भी निर्वाचित न होकर भी इस पद पर हैं!

साथ ही, मैं यह नहीं भूल सकता कि सन् 2009 में जब मैंने डा0 सिंह को देश का सर्वाधिक कमजोर प्रधानमत्री कहा था, तो मेरे ही कुछ सहयोगियों को लगा कि यह ज्यादा हो गया ह। लेकिन मैं आज भी कहता हूं कि उनकी यही कमजोरी जो उन्हें 10 जनपथ के सम्मुख गौण महत्व का बनाती है और परिणामतया प्रधानमंत्री पद में निहित शक्तियों का उपयोग कर पाने में वह असफल हो रहे हैं।

पुन:, यही डा0 मनमोहन सिंह की वह कमजोरी है, जिसके चलते यह इतिहास में दर्ज होगा कि भले ही व्यक्तिगत रूप से वह ईमानदार होंगे, परन्तु जिस सरकार का वह एक दशक से नेतृत्व कर रहे हैं, वह स्वतंत्र भारत की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार है और यह महज मीडिया रिपोर्टों के आधार पर नहीं अपितु अनेक न्यायिक निर्णयों और नियंत्रक महालेखाकार की अनेक रिपोर्टों से पुष्ट होता है।

जैसाकि शुरूआत में मैंने कहा कि मेरे राजनीतिक जीवन में अटलजी के साथ काम करने का अवसर मिलने को मैं अत्यन्त सौभाग्यशाली मानता हूं। मैं निश्चित रूप से मानता हूं कि कोई भी राजनीतिक विश्लेषक जब अटलजी के 6 वर्षीय शासन का निष्पक्ष आकलन करेगा तो उसे स्वीकारना ही होगा कि 1998 से 2004 तक का एनडीए शासन उपलब्धियों से भरा है और उसे अक्षरश: कुछ भी गलत नहीं मिलेगा। उस अवधि की कुछ उपलब्धियों को यदि सार रूप में कहना है तो वे निम्नलिखित हैं:

1) प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों में भारत परमाणु हथियार सम्पन्न देश बना।
2) आर्थिक क्षेत्र में सरकार ने आधारभूत ढांचे - राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों, सिंचाई, ऊर्जा पर ध्यान केन्द्रित किया।
3) कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर में भारत को सुपर पॉवर बनाया।
4) अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद, अटलजी ने एनडीए के 6 वर्षीय शासन में मुद्रास्फिीति पर सफलतापूर्वक नियंत्रण रखा।
5) 6 वर्षीय शासन, सुशासन, विकास और गठबंधन का मॉडल था।
6) सरकार के विरूध्द भ्रष्टाचार की कोई चर्चा तक नहीं थी।
7) नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना की नींव एक टास्क फोर्स ने रखी जिसके लिए एक केबिनेट मंत्री को मुक्त कर इस कार्य में जुटाया गया।

मैं इसे अटलजी की विशिष्ट विलक्षणता मानता हूं कि इतनी उपलब्धियां होने के बावजून मैंने कभी भी उनमें अहंकार या अहं की तनिक भी झलक नहीं पाई। इसलिए सन् 1947 से अब तक के प्रधानमंत्रियों के लेखा-जोखा की बात करते समय मैं कह सकता हूं कि उनका कार्यकाल सबसे ज्यादा उपलब्धियों भरा रहा है।

(Writer, LK Advani is a former Dpty. Prime Minister of India.) 

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