रविवार, अगस्त 09, 2009

बोतल हॉउस


आपने कई ऐसे राजा-महाराजाओं के नाम सुने होंगे, जिन्होंने ताजमहल, शीशमहल और न जाने क्या-क्या बनवाए। लेकिन इतिहास में एक महाराजा ऐसे भी हैं जिन्होंनें बोतलों का महल बनवाया है। मदिरा की बोतलों से बना ये बोतल हॉउस मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से 3 किलोमीटर दूर मधुवन गणेशगंज में है। दुनिया में इस तरह का कोई दूसरा महल नहीं है।

बंगले की दिवालों में सिर्फ बोतलें ही दिखाई देती हैं। बोतलें कुछ इस तरह से लगाई गई हैं कि वे देखने वालों को रोमांचित कर देती हैं। 1938 में बना यह बोतल हॉउस लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है। इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इस बोतल हॉउस को देखने से यही लगता है कि इसके बनवाने वाले महाराजा वीर सिंह जूदेव मदिरा के काफी शौकीन रहे होंगे। तभी तो संगमर और रंग-बिरंगे पत्थरों के शानो-शौकत को छोड़कर बोतलों का महल बनवाया।

उस राजपरिवार के लोग आज भी मौजूद हैं, इनके मुताबिक एक विदेशी सर विडवर्न की देख-रेख में इस बोतल हॉउस का निर्माण किया गया। टीकमगढ़ रियासत के महाराजा वीर सिंह जूदेव के लिए यह बोतल हॉउस ड्रीम हॉउस था।
 
इसके बनने की कहानी बहुत निराली है। बात 1927 की है जब इस इलाके को ओरछा रियासत के नाम से जाना जाता था। राजा वीर सिंह जूदेव मदिरा के तो शौकीन थे ही, दूसरी रियासतों के राजाओं की मेहमाननवाजी भी खूब करते थे। मेहमानों के आने पर उनका स्वागत शाही अंदाज में होता था। मेहमानों के लिए खास तरह के व्यंजनों के साथ ही उम्दा किस्म की मदिरा भी परोसी जाती थी। इसी कारण मदिरा की बोतलें भारी तादाद में इकट्ठा हो गईं।

एक बार इन बोतलों को फेंका जा रहा था, तभी रियासत के बागवान सर विडवर्न ने राजा जूदेव को सलाह दी कि वे बोतलों से महल बनवा सकते हैं। राजा ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे दी। सर विडवर्न ने बोतलों को ऐसा जोड़ा कि बोतलों ने आशियाने का रूप ले लिया। बंगले के पास ही एक अलग घर भी बनाया गया था, जिसमें विडवर्न रहा करते थे। कहते हैं कि नशा शराब में होती तो नाचती बोतल, लेकिन यहां नशा राजा जूदेव को था, सपनों के महल में रहने का नशा। जरूर यहां वे मस्त रहते होंगे।

इस बोतल महल में दो कमरा, एक बरामदा, सजने-संवरने के लिए एक अलग कमरा और बैठने के लिए फर्नीचर भी है। इसे बनाने में हजारों बोतलों को प्लॉस्टर ऑफ पेरिस के सहारे जोड़ दिया गया। जिसमें खास तौर से हरी बीयर और वोदका की बोतलों का इस्तेमाल किया गया है। मूल रूप से देखा जाए तो मदिरा की बोतलों से बना यह बोतल हॉउस मेहमान-खाने के साथ-साथ महाराजा की मधुशाला ही थी और मधुशाला हो तो कविवर हरिबंशराय बच्चन की मधुशाला की पंक्तियां जुबां पर आना लाजमी ही है---------

मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला,
प्याले में मदिरालय विंबित करनेवाली है हाला।
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भट्ठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला।
साकी मेरी ओर न देखो मुझको तिनक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आंखों से देख रहा हूँ मधुशाला।

लेकिन इस रियासत में अब कोई वैसा पीने वाला ना रहा और ना ही पिलानेवाला कि जिसका पीना और पिलाना ही इतिहास बन जाए और ये शौक एक महल का रूप ले ले।  
बोतल हॉउस भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का एक अनोखा ऐतिहासिक धरोहर है।  इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कोई लेने के लिए तैयार नहीं है। यह धरोहर रख-रखाव के अभाव में क्षतिग्रस्त होता जा रहा है।

कहाँ गया वह स्वगिर्क साकी, कहाँ गयी सुरभित हाला,
 कहाँ गया स्वपनिल मदिरालय, कहाँ गया स्वणिर्म प्याला!
फ़ूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाल।

जी हां, यहां के साकी यानि महफिल जमानेवाले तो चले ही गए, उनके सपनों का ये महल भी अब जर्जर हालत में है। इसकी हालत देखकर तो यही लगता है कि एक दिन इसका नामोनिशान ही मिट जाएगा। सरकार चाहे तो इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दे कर इसको बचा सकती है।

1 टिप्पणी:

प्रणाम पर्यटन ने कहा…

pavan ji aapne bahut sundar jankari dii.
aap ka bahut-bahut dhanyvad.

pradeep srivastava

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