
कांग्रेस को डर है कि महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर यूपीए सरकार की कथित जनविरोधी नीतियां कहीं उसके ‘युवराज’ राहुल गांधी की ताजपोशी में बाधा न पैदा कर दे, इसीलिए वह जनता का इन मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ का हौवा खड़ा कर रही है।
इसी साजिश के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के लिए कांग्रेस तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है और 'हिन्दू आतंकवाद' का भूत खड़ा कर रही है।
‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसे छद्म शब्द गढ़कर संघ को उससे जो़डना कांग्रेस की ओछी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। किसी इक्का-दुक्का हिन्दू मंच के आक्रोश को ‘हिन्दू आतंकवाद’ का नाम दे देना छुद्र राजनीतिक मानसिकता का ही परिचायक है।
कांग्रेस चुनावी लाभ के लिए कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहती है। वह ऐन-केन-प्रकारेण अपने ‘युवराज’ राहुल गांधी का राजनीतिक मार्ग प्रशस्त करने को आतुर है। महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद और भ्रष्टाचार पर सरकार की जन विरोधी नीतियों का दंश राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए खतरा न बन जाए इसके लिए कांग्रेस मुस्लिम वोट पर एकाधिकार चाहती है।
मालेगांव विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी का मामला हो या फिर अजमेर दरगाह विस्फोट कांड में आरोपी बनाए गए देवेंद्र गुप्ता का, जांच एजेंसियां कोई ठोस आधार स्थापित नहीं कर पाई हैं। पूछताछ के नाम पर उनकी पहचान को मीडिया के माध्यम से सुनियोजित तरीके से दुष्प्रचारित कर संघ को बदनाम करने की कोशिश की गई।
ज्ञातव्य है कि हाल ही में एक समाचार चैनल पर संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी को कथित तौर पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने से संबंधित रिपोर्ट प्रसारित की गई थी। इस रिपोर्ट के प्रसारित होने के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने समाचार चैनल के दिल्ली स्थित वीडियोकॉन टॉवर कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था।
इस प्रदर्शन के बाद टीवी टुडे समूह से जुड़े चैनल और अन्य समाचार चैनलों ने इसको ‘आरएसएस के गुंडों का हमला' करार दिया था। प्रदर्शन के दौरान बात बस इतनी सी थी कि भीड़ में शामिल लगभग 40-50 लोगों का समूह संघ के वरिष्ठ लोगों की अनदेखी करता हुआ मुख्य द्वार के भीतर घुस गया और तोड़फोड़ करने लगा, जिसके परिणामस्वरूप कुछ गमले टूट-फूट गए थे। हालांकि संघ ने इसके लिए खेद भी जताया था।
यह भी कम हास्यास्पद नहीं है ये चैनल लश्कर-ए-तैयबा जैसे खूंखार आतंकी संगठन के आतंकियों को ‘लश्कर का कार्यकर्ता’ बताते हैं और अनुशासनप्रिय, शांतिपूर्ण तथा अहिंसक तरीके से संघ के कार्यकर्ताओं के लोकतांत्रित विरोध-प्रदर्शन को ‘आरएसएस के गुंडों का हमला’ करार देते हैं।
इस प्रकार का आचरण व कार्य व्यवहार इस आशंका को बल प्रदान कर रहा है कि सेकुलरिज्म का ढिंढोरा पीटने वाली वर्तमान मीडिया सत्ताभिमुखी होकर अपने सारे लोक-लाज भूल गई है और माध्यम की बजाए मध्यस्थ की भूमिका निभाने लगी है।
यदि उसका आचरण इसी प्रकार सत्ताभिमुखी और गैर-लोकतांत्रिक रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जनता का विश्वास ही उस पर से उठ जाएगा और तब मांगे विज्ञापन क्या भिक्षा भी नहीं मिलने वाला।
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