मंगलवार, जनवरी 12, 2010

राम मंदिर निर्माण के प्रबल पक्षधर थे नरसिंह राव

तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिंह राव अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के प्रबल पक्षधर थे। वह किसी भी कीमत पर मंदिर निर्माण का श्रेय संघ परिवार को नहीं लेने देना चाहते थे। शायद इसीलिए ढांचा गिरने के तत्काल बाद वह मंदिर निर्माण की गुप्त योजना बनाने में जुट गए थे।

इन तथ्यों का खुलासा सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी श्री पी.वी.आर. प्रसाद ने अपनी तेलुगू पुस्तक “असलू एमी जरिगिंदंते ” (वास्तव में क्या हुआ?) में किया है।

ज्ञातव्य हो कि श्री प्रसाद, श्री नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव एवं उनके सूचना सलाहकार के पद पर कार्यरत थे।

इस पुस्तक का तेलुगू संस्करण अभी हाल ही में विजयवाड़ा में लोकार्पित हुआ है। इसका अंग्रेजी संस्करण भी जल्द आने की उम्मीद है।

पुस्तक में आगे कहा गया है कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ध्वस्त होने के बाद श्री राव, गैर-राजनीतिक तरीके से मंदिर निर्माण के लिए हर तरह से प्रयासरत होने के बावजूद भी बहुत ही सावधानीपूर्वक, इस पूरे परिदृश्य से कांग्रेस और स्वयं को अलग रखने में सफल हो गए थे।

हालांकि, रामालयम ट्रस्ट ने अपने लंबे प्रयासों के बाद मंदिर निर्माण की योजना बना ली थी, लेकिन 1996 के आम चुनाव में श्री राव के नेतृत्व में कांग्रेस के हार जाने के कारण मंदिर निर्माण संभव नहीं हो सका।

गौरतलब है कि यह मसला सुलझाने के लिए रामालयम नामक गैर-राजनीतिक ट्रस्ट श्री राव की पहल पर बना था, जिसकी समिति में पुरी, श्रृंगेरी, कांची, बद्रीनाथ और द्वारिका पीठों के शंकराचार्य, अयोध्या के हनुमानगढ़ी एवं लक्ष्मणगढ़ी के महंत सहित देश के प्रमुख संत सम्मिलित थे।

पुस्तक के लेखक श्री प्रसाद का कहना है, “ यदि श्री राव की सत्ता में दोबारा वापसी हो गई होती तो शायद मंदिर निर्माण हो चुका होता ।”

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